Suryakank Tripathi Nirala

 

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

(१८९९ – १९६१)

‘निराला’ ने छायावाद से आगे बढ़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित की। अपने समकालीन कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछन्द के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ हैं।  (साभार: विकिपीडिया)

गीत गाने दो मुझे

गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।

भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।